ओवैसी को तेजस्वी यादव ने कहा ‘चरमपंथी’, क्या बिहार के मुस्लिम वोटर भी मानेंगे?
बिहार चुनाव के पहले चरण का प्रचार खत्म होते होते माहौल पूरे उबाल पर पहुंच गया. महागठबंधन जहां मुस्लिम वोटों को लेकर आश्वस्त नजर आ रहा था, वह तेजस्वी के एक बयान से परेशानी में आ गया. दरअसल, एक इंटरव्यू में तेजस्वी से पूछा गया कि जब ओवैसी बिहार में सेकुलर पार्टियों से गठबंधन करना चाह रहे थे तो उन्हें तवज्जो क्यों नहीं दी गई. इस पर तेजस्वी ने सीधा जवाब दिया कि बिहार में extremist (चरमपंथियों) के लिए कोई जगह नहीं है. फिर क्या था, ओवैसी ने उसी पल ये बयान मुसलमानों के बीच ले जाकर एक ‘विक्टिम कार्ड’ में बदल दिया.
ओवैसी ने एक रैली में कहा कि जो लोग हमें चरमपंथी कहते हैं, वही असल में मुसलमानों की आवाज़ दबाना चाहते हैं. उनकी पार्टी के नेता वारिस पठान ने भी सीधा तंज कसा, ‘तेजस्वी ने रसूल की शान में गुस्ताख़ी पर एक शब्द नहीं बोला, अब हमें चरमपंथी कह रहे हैं?’ अब सवाल ये है कि बिहार के मुसलमान इसे कैसे देख रहे हैं, और इससे किसकी राजनीति को फायदा या नुकसान हो सकता है?
बिहार में RJD की राजनीति यादव और मुस्लिम वोटबैंक के फॉर्मूले पर चलती आई है. तेजस्वी यादव खुद को हमेशा ‘सेक्युलर राजनीति’ का चेहरा बताते हैं. उनके पिता लालू यादव ने भी इसी फार्मूले पर सालों तक मुसलमान-यादव (MY) समीकरण के सहारे राज किया. यादव वोट अभी भी तेजस्वी के साथ हैं. लेकिन अब ओवैसी की पार्टी AIMIM ने इस समीकरण के मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगा दी है. उनकी राजनीति से मुसलमानों में दो धड़े बनते दिख रहे हैं – सेक्युलर वफादार और मुस्लिम पहचान की राजनीति करने वाले. ओवैसी की राजनीति का सबसे मजबूत हथियार है ‘हम पर हमेशा शक किया जाता है’ वाला नैरेटिव. जब तेजस्वी ने उन्हें चरमपंथी कहा, तो उन्होंने वही लाइन पकड़ी, ‘जब हम अपने हक की बात करते हैं, तो हमें चरमपंथी कहा जाता है. लेकिन जब कोई रसूल की शान में गुस्ताखी करता है, तब सब सेक्युलर चुप हो जाते हैं.’
इस बयानबाजी ने सोशल मीडिया पर मुस्लिम युवाओं के बीच AIMIM को एक ‘मुस्लिम प्राइड’ के प्रतीक के तौर पर उभारा. इसका एक बैकग्राउंड ये भी है कि ओवैसी सीधे मुसलमानों के मुद्दे – मॉब लिंचिंग, बुलडोजर, NRC, और इस्लामोफोबिया – को छूते हैं, जबकि तेजस्वी और नीतीश जैसे नेता इन मुद्दों पर अक्सर चुप दिखते हैं. तेजस्वी के बयान ने ओवैसी को एक बड़ा ‘नैरेटिव’ दे दिया – कि ‘सेक्युलर पार्टियां मुसलमानों को सिर्फ वोट बैंक समझती हैं, उनकी असली आवाज नहीं सुनना चाहतीं.’
लेकिन, कई मुस्लिम ऐसे भी थे जो ओवैसी के बयानों को राजनीतिक बता रहे हैं. दरअसल, बिहार में मुसलमानों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है जो ओवैसी को बीजेपी की बी-टीम मानता है. इसी नाते वह ओवैसी और उनकी पार्टी के रसूल की शान में गुस्ताखी का हवाला देने की आलोचना कर रहा है. क्योंकि, उसे लगता है कि बिहार में NDA, खासतौर पर बीजेपी को रोकने का काम महागठबंधन की पार्टियां ही कर सकती हैं. ओवैसी नहीं.
कांग्रेस और JDU की कश्मकश
कांग्रेस चाहती है कि मुस्लिम वोट ‘महागठबंधन’ में ही रहें, लेकिन कांग्रेस का बिहार संगठन बहुत कमजोर है. नीतीश कुमार का JDU खुद NDA में होने के बाद मुसलमानों से दूर हो चुका है, हालांकि वे मदरसा सुधार और अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति जैसी योजनाओं से संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं. लेकिन, वक्फ कानून पर केंद्र सरकार को समर्थन देकर नीतीश कुमार ने जेडीयू की स्थिति बदल दी है. अब मुसलमान उसे बीजेपी के साए वाली पार्टी कह रहे हैं. ऐसे में महागठबंधन और एनडीए के बीच ओवैसी ने अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश की है.
रिपोर्ट/गोविंद सोनी/ओएसिस न्यूज/बिहार

