2018 का दौर ICICI बैंक के लिए अच्छा नहीं रहा था। चंदा कोचर पर गंभीर आरोप लगे थे। बैंक के ग्राहकों और निवेशकों का भरोसा हिल गया था। लोग बैंक से पैसा निकालने लगे थे, लेकिन संदीप बख्शी ने अपने अनुभव और समझ के दाम पर पूरी बाजी पलट दी और बैंक का कायाकल्प कर दिया।
एक वक्त था जब आज देश के टॉप बैंकों में शामिल आईसीआईसीआई डूबने के कगार पर पहुंच गया था। बैंक की हालात खराब हो गई थी। बैंक के तात्कालीन सीईओ पर गंभीर आरोप लगे थे। लोगों का भरोसा बैंक से हिलने लगा था। खाताधारकों को अपनी जमापूंजी की चिंता सताने लगी थी। हालात ऐसे हो गए थे कि लोग बैंक से अपना पैसा निकालने के लिए एटीएम और बैंक की शाखाओं के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो गए। मुश्किल दौर से गुजर रहे इस बैंक के लिए संकटमोचक बने संदीप बख्शी। संदीप बख्शी, जिन्हें साल 2018 में चंदा कोचर की जगह आईसीआईसीआई बैंक का नया चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर बनाया गया था।
बैंक की कमान संभालने के बाद संदीप बख्शी ने चुपचाप काम करना शुरू कर दिया। बैंक की स्थिति अच्छी नहीं थी। ग्राहकों और निवेशकों का भरोसा हिला हुआ था। आईसीआईसीआई बैंक पर संकट के बादल मंडरा रहे थे। कॉरपोरेट गर्वेंस के मु्द्दे हावी हो रहे थे। तात्कालीन सीईओ चंदा कोचर के ऊपर लगे आरोपों का असर बैंक की सेहत पर दिख रहा था। संदीप के सामने चुनौतियां बहुत थीं। एक तरफ ग्राहकों और निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा था तो दूसरी ओर बैंक के स्टाफ के भीतर अपने भविष्य को लेकर चिंता सता रही थी। बैंक दो साल के लोअर लेवल पर पहुंच गया था। संदीप ने योजना बनाकर इस पर काम करना शुरू किया।

संदीप बख्शी के सामने चुनौती थी कि वो आईसीआईसीआई बैंक की खोई साख को वापस दिलाएं, बैंक की फाइनैंशियल परफार्मेंस को हर एक पैमाने पर मजबूत करें। ग्राहकों और निवेशकों का भरोसा जीते। इन चुनौतियों में संदीप को अपनी दादी से मिला ज्ञान काम आया। उनकी मेहनत और दादी के उस नुस्खे ने रंग दिखाया और आज ये बैंक देश का दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया है।
मुश्किल से घिरे आईसीआईसीआई बैंक का टर्नराउंड आसान नहीं था। संदीप बख्शी ने अपने अनुभव और अपनी दादी से मिली सीख के दम पर इसे कर दिखाया। संदीप खामोशी से अपना काम करते रहते रहे। बैंक की कमान अपने हाथों में लेने के बाद उन्होंने कई सख्त फैसले लिए। संदीप ने एक इंटरव्यू के दौरान अपनी दादी की बातों का जिक्र करते हुए कहा था कि 70 के दशक में महिलाओं और पुरुषों के बीच भेदभाव होता था। उस वक्त मेरी दादी कहा करती थी भेदभाव मत करो। ICICI बैंक में काम करने के दौरान मैंने इसी फॉर्मूले का इस्तेमाल किया। बिना किसी भेदभाव के सबको बराबर काम करना है। दादी की ये बात मेरे दिमाग में बैठ गई थी। उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि किसी भी संस्था के लिए आंतरिक प्रतियोगिता, द्वेष और भेड़ चाल की जगत सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मैंने उस वक्त आईसीआईसीआई बैंक में वहीं किया। संदीप ने इनोवेशन और इंजीनियरिंग के दौर में बिल्कुल उल्टा काम किया। उन्होंने आईसीआईसीआई बैंक को सिंपल, कोलैबोरेटिव और कंजेशन फ्री बनाने का फैसला किया।
संदीप बख्शी का मानना है कि एडवेंचर के बजाए अपने काम को सिंपल रखना चाहिए। सिंपल तरीके से हम कारोबार को अच्छे तरीके से बढ़ा सकते हैं। उन्होंने बताया कि बैंक की कमान संभालने के बाद मेरा सबसे पहला उद्देश्य था ग्राहकों को भरोसा जीतना। इससे पहले आईसीआईसीआई बैंक का मकसद ग्राहकों से पैसे वसूलना था, जिसे मैंने बदलकर ग्राहकों की सेवा करना बना दिया। जो बैंक पहले ब्यूरोक्रेटिक संस्था बन चुका था उसे यूजर फ्रेंडली बनाया गया। संदीप बख्शी की लगातार कोशिशों के बाद आज बैंक मजबूत स्थिति में पहुंच चुका है।